०८ औरंगजेब का पत्र

आपने अब तक पढ़ा था कि शाहजहाँ ने आमेर के राजा जयसिंह को तीन पत्र (आज्ञा-पत्र : 'फरमान') लिखे थे। इन तीनों की फोटो प्रतियाँ ताजमहल के आज के संग्रहालय (पूर्व नाम : नक्कान खाना) में रखी हैं। इनमें से पहला फरमान सम्राज्ञी के पार्थिव शरीर को दफन करने के दो मास पश्चात्‌, दूसरा फरमान पहले फरमान के ४ मास बाद लिखा गया था। तीसरा फरमान अवश्य लगभग साढ़े चार वर्ष पश्चात्‌ भेजा गया था। इन तीनों ही फरमानों में शाहजहाँ द्वारा राजा जयसिंह से मकराना की खानों से संगमरमर पत्थर शीघ्रातिशीघ्र आगरा भेजने के लिये प्रबन्ध करने तथा व्यवधान न डालने का आग्रह किया था।

फरमानों की तिथियों पर यदि ध्यान दें तो स्पष्ट है कि सम्राज्ञी के शव को दफन करने के पश्चात्‌ मात्र कब्र (या कब्रें) बनाने के लिये ही संगमरमर की आवश्यकताशाहजहाँ को पड़ सकती थी। अतः मुल्कशाह को कोष लेकर एक फरमान के साथ आमेर दो मास के अन्दर भेजा गया। जब इससे काम नहीं बना तो सय्ययद इलाहादाद को चार मास बाद ही दूसरे फरमान के साथ रवाना किया गया। सम्भवतः उस समय तक कुरान लिखने की योजना भी बन चुकी थी, अस्तु। इस फरमान में गाड़ियों की संखया जो केवल दो सौ तीस है, को स्पष्ट लिखा गया। उस समय की गाड़ियों में लकड़ी के पहिये होते थे तथा कच्ची लीक (मार्ग) पर चलती थीं। अतः एक गाड़ी मात्र लगभग एक टन संगमरमर ही ला सकती थी। पाठक स्वयं अनुमान कर सकते हैं कि क्या ताजमहल में मात्र २३० टन या इससे भी कम (कुछ छिलने, कटने, टूटने में भी कम हुआ होगा) में बना है ? स्पष्ष्ट है इतने कम पत्थर में तो कुरान ही लिखी गई होगी।

यह भी निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट कर दूूं कि यदि शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया होता तो उसे ईंटों आदि की आवश्यकता पड़ती, न कि संगमरमर की।

मेरे पड़ोस में कुछ मास पूर्व एक नया मकान बना था। प्रारम्भ में उसके लिये ईंटें, रेत, गिट्‌टी तथा सीमेन्ट आदि आया था। लगभग २ मास बाद जब मकान की छत की ऊँचाई तक पहुँच गया तब छत पर लेंटर डालने के लिये लोहे के सरिएआये थें इसके कुछ दिनों बाद मेरे समीप ही एक दूसरा मकान बना था, परन्तु उसके लिये ईंटें नहीं आई थीं सबसे हपले दिन ही लोहे के सरिये आये थे तथा लुहारों ने आकर काम प्रारम्भ कर दिया था। कुछ दिन बाद सीमेन्ट, रेत, गिट्‌टी आदि आईं तथा कंक्रीट के खम्भे बनाये जाने लगे। जब पूरा भवन छत सहित बनकर तैयार हो गया तब जाकर ईंटे आई थीं। इन उाहरणों से सिद्ध है कि वही वस्तु पहली आती है जिसे नींव में डलना होता है तथा जिस वस्तु का छत या उसके ऊपर प्रयोग करना होता है, वह वस्तु सबसे बाद में मंगाई जाती है। यह स्वयं सिद्ध है कि आधुनिक ताजमहल की नींव में संगमरमर का प्रयोग नहीं किया गया है। जिनकी आस्था अभी भी शाहजहाँ द्वारा ताजमहल बनाये सिद्धान्त में है, वे स्वयं जाकर निरीक्षण कर सकते हैं। नींव में उन्हें ईंटों के बने बयालिस कुएँ मिलेंगे जिनके ऊपर लकड़ी के मोटे मोटे खम्भे हैं। लकड़ी आगरा में नहीं होती अपितु काश्मीर अथवा असम से आती थी। हैकोई फरमान लकड़ी के लट्‌ठे मंगाने का ? कहां से होगा ? नींव तो शाहजहाँ ने बनवाई ही नहीं थी।

हमको पिछले १०८ वर्षों से रटाया जा रहा है कि ताजमहल का निर्माणकाल २२ वर्ष (सन्‌१६३२ से सन्‌ १६५३ तक) है। ताजमहल के द्वार पर पुरातत्व विभाग द्वारा प्रदर्शित पटि्‌टका पर भी यही लिखा है। १०८ वर्ष इसलिये कि टैवर्नियर की पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद श्री वी. वी. बॉल द्वारा सन्‌ १८८१ में प्रथम बार प्रकाशित कराया गया था (अभी सन्‌ १९९७ है) यदि यह कथन सत्य होता तो न केवल सन्‌ १६५३ में अपितु उसके अनेक वर्षों बाद तक ताजमहल भवन नवीन एवं नूतन होता, न कि जीर्ण-शीर्ण दशा में होता। आइए देखें, सन्‌ १६५२ में इसकी क्या दशा थी ?

सन्‌ १६५२ में शाहजादा औरंगजेब दिल्ली से दक्षिण जा रहा था। मार्ग में वह आगरा रुका था तथा ताजमहल देखने गयाथा। ताजमहल का उस समय का वर्णन शाहजादा औरंगजेब ने शाहजहाँ को लिखे पत्र में इस भाँति किया है : 'मैं अकबराबाद (आगरा) ३ मुहर्रम गुरुवार को पहुँचा। वहाँ मैं बादशाहजादी जहानआरा के बाग में गया....। दूसरे दिन शुक्रवार होने के कारण मैं उस पवित्र कब्र पर श्रद्धाँजलि देने गया जो महामना (आप) की उपस्थिति में बनाई गई थी। वह कब्र अच्छी दशा में मजबूत एवं पक्की थी, परन्तु उसके ऊपर का गुम्बज बरसात में उत्तर की ओर दो या तीन स्थानों पर टपकने लगा है। इसके अतिरिक्त मेहराबें दूसरे खण्ड के कुछकमरे, चार छोटे गुम्बज तथा चार उत्तरी कमरे, सात कमरों की छतें आदि पानी की सीलन से तर हा जाती हैं और टपकने लगती हं। मस्जिद तथा जमातखाना भी टपकता है।'

इसके आगे औरंगजेब ने इन सभी दोषों के बारे में विचार व्यक्त करे हुए बादशाह शाहजहाँ से इसकी मरम्मत पर अधिक ध्यान देने की प्रार्थना की थी। इसी पत्र में इस भवन के बाग को महताब बाग (चन्द्र वाटिका) के नाम से सम्बोधित किया गया है। आगे उसने पिछले (नदी की ओर का) के सुरक्षित रहने पर आश्चर्य प्रकट किया है। शनिवार को औरंगजेब पुनः ताजमहल गया एवं उसने शाहजादा दारा से विचार-विमर्श किया। दारा भी उसी दिन औरंगजेब से मिलने गया। रविवार को औरंगजे ने आगे की यात्रा प्रारम्भ की तथा मंगलवार ८ मुहर्रम सन्‌ १६५२ को यह पत्र उसने शाहजहाँ को धौलपुर के समीप से लिखा था।

टैवर्नियर के अनुसार सन्‌ १६५२ में गुम्बज पर ही कार्य चालू रहना चाहिए था, क्योंकि उसके अनुसार तो (यदि ताजमहल का बनना सन्‌ १६३१ में प्रारम्भ हुआ) यह भवन सन्‌ १६५३ में पूरा हुआ था। यदि ऐसा होता तो औरंगजेब स्पष्ट लिखता कि ताजमहल अभी तक बन रहा है, परन्तु उसने लिखा है कि उसे ताजमहल, मस्जिद एवं जमातखानाआदि सभी बने हुए तैयार मिले थे। इस प्रकार टैवर्नियर को २२ वर्षों के आधार पर ताजमहल के निर्माण काल की दोनों धारणाएं सन्‌ १६३१-५३ तथा १६४१-६३ असत्य सिद्ध हो जाती हैं।

इस पत्र को पुनः एक बार ध्यानपूर्वक पढ़िए तो कई अन्य तथ्य स्पष्ट होकर सामने आते हैं। कब्र तथा आसपास का क्षेत्र पक्का तथा मजबूत था, परन्तु उसके ऊपर गुम्बज बुरी दशा में था। स्पष्ट है कि जो नई चीज थी वही सही दिशा में थी, परन्तु जिस भाग को बने शताब्दियाँ बीच चुकी थीं, उसका जीर्ण-शीर्ण होना स्वाभाविक ही था। यह भी एक पुष्ट प्रमाण है कि भवन शहजहाँ ने नहीं बनवाया थ, मात्र कब्र बनवाई थी। औरंगजेब अपने पत्र में स्पष्ट लिखाता है कि मैं वह कब्र देखने गया था जो आपकी उपस्थिति में बनाई गई थी। वह यह नहीं लिखता है कि मैं उस भवन को देखने गया था जिसे आपने इतने अरमानों से बनवाया था अथवा जिसे आपने मेरी सवर्गीय माता को दिेय गये वचनों के अनुसार विश्व प्रसिद्ध भव्य रूप दिया था।
औरंगजेब ने यह प्रतिवाद भी नहीं किया है कि मजदूरों और कारीगरों ने ठीक ढंग से कार्य नहीं किया जिसके कारण भवन टपकने लगा है। उसके लेखन से यह कहीं आभास नहीं होता हैकि यह भवन शाहजहाँ ने बनवाया था अथवा यह नया भवन है। कब्र नई बनी है तथा वह अच्छी दशा में है, यह स्पष्ट लिखा है।

वह युग पूर्णदण्ड अथवा पूर्ण कृपा का था। शासक की इच्छा ही नियम अथवा कानून था। यदि सम्राट्‌ प्रसन्न हो जाय तो उसकी कृपा के फलस्वरूप इतनी सम्पत्ति मिल जाती थी कि सात पीढ़ियां आनन्दपूर्वक खायें। इसी प्रकार यदि सम्राट्‌ अप्रसन्न हो जाय तो कम से कम मृत्यु-दण्ड का विधान तो निश्चित ही था। यदि शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया होता तो उन मजदूरों, कारीगरों तथा विशेषज्ञों की क्या दश होती जिनको रु. १००० प्रति मास पर शाहजहाँ ने २२ वर्षों तक पाला था। ताजमहल के बगीचे में फलदार वृक्षों की भरमार। उनमें से हर वृृक्ष की प्रत्येक उपलब्ध डाल पर मजदूर, कारीगर तथा विशेषज्ञ लटका दिये गये होते, झूल-झूल कर मरने के लिये। २०,००० व्यक्तियों को लटकाने के लिए बाग के वृक्ष कम पड़ जाने पर पांच मील (८ किलोमीटर) लम्बे राजमार्ग पर उपलब्ध हर वृक्ष पर पर्याप्त कारीगर लटके मिलते, क्योंकि ताजमहल का बना समाप्त होते ही उसमें कारीगरी के दोष उत्पन्न हो गये थे। २०,००० व्यक्तियों को एक दिन में ही लटका कर मार दिये जाने की घटना वास्तव में इतिहासमें प्रसिद्ध होती और ऐसी कोई घटना नहीं घटी अपितु विश्व प्रसिद्ध गुम्बज विशेष इस्माइल खान रूमी भी नहीं मारा गया (गुम्बज में दरारें उसी समय पाई गई थीं) इससे स्पष्ट सिद्ध है कि शाहजहाँ ने ताजमहल नहीं बनवाया था, अस्तु किसी को दण्ड देने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता था।

अनेक इतिहासकारों ने इस भवन के बनने का समय १२ वर्ष से लेकर २२ वर्ष लिखा है। इनमें कोई भी सत्य होता तो सन्‌ १६५२ में इसे बने हुए ९ वर्ष से अधिक नहीं हुए होते। जब २१ वर्ष पूर्व बनी कब्र तथा आसपास के स्थल को औरंगजेब ने 'चुस्त-दुरुस्त' पाया था तो उसके भी कई वर्ष पश्चात्‌ बने भवन को भी उसे नया तथा 'पुखता' पाना चाहिए था। एक बात ओर, यदि यह भवन शाहजहाँ ने ही बनवाया होता अथवा यदि टैवर्नियर के अनुसार उस समय वह बन ही रहा होता (टैवर्नियर के अनुसार सन्‌ १६५३ से सन्‌ १६६३ तक किसी समय इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ था) तो हमको इतिहास में यह भी स्पष्ट लिखा मिलता कि सन्‌ १६५२ ई. में औरंगजेब ने अनेक कारीगरों को हाथी से कुचलवा दिया था, क्योंकि उनके द्वारा बनाया गया भवन टपक रहा था। पाठकों की सूचना के लिये यहाँ पर यह स्पष्ट है कि इस भवन कीदीवारें एवं छत १४ फुट मोटी हैं तथा पर्याप्त मजबूत हैं। यदि इतनी मोटी छत टपक रही थी तो यह नये भवन के लिये आश्चर्यजनक ही था।

औरंगजेब ने बाग को 'महताब बाग' से सम्बोधति किया है। इस पर अधिक न कहते हुए मात्र इतना ही पर्याप्त होगा कि मकबरों, कब्रिस्तानों तथा मजारों के आस-पास शान्ति तथा सादगी की आवश्यकता होती है। 'महताब बाग' अर्थात्‌ 'चन्द्र उद्यान' आदि विलासिता की वस्तुएँ हैं और महलों में ही शोभा देती हें।

इस पत्र में औरंगजेब ने आश्चर्य व्यक्त किया है कि यमुना की बाढ़ से भवन की पिछली दीवार को क्षति क्यों नहीं पहुँची थी। यदि भवन की नींव शाहजहाँ ने बनवाई होती तो औरंगजेब को स्वयं नींव की संरचना का भेद ज्ञात होता अथवा वहाँ पर उपस्थित अधिकारी इस भेद को उस पर स्पष्ट कर सकते थें स्पष्ट है कि शाहजहाँ ने न तो ताजमहल की नींव ही बनवाई थी और न ही नींव के ऊपर की संरचना उसके द्वारा कराई गई थी।
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