०९ कुछ अन्य प्रमाण

पाठकों को औरंगजेब द्वारा धौलपुर के समीप से शाहजहाँ को लिखे पत्र का अब पूरा ज्ञान हो गया होगा। यह पत्र औरंगजेब ने मुहर्रम (सम्भवतः १०६२ हि.) तदनुसार सन्‌ १६५२ (सम्भवत : २४फरवरी) को लिखा गया था। यह समय वह था जिस समय तक या तो ताजमहल निर्माणाधीन रहा होगा अथवा उसे निर्मित हुए ९-१० वर्ष ही हुए होंगे। शुक्रवार ४ मुहर्रम को औरंगजेब ताजमहल देखने गया। अगले दिन शनिवार ५ मुहर्रम को वह पुनः ताजमहल देखने गया, और उसी दिन शाहजादा दारा शिकोह से मिला था एवं दारा भी बाद में (उसी दिन) औरंगजेब से मिलने गया था। यद्यपि पत्र में स्पष्ट उल्लेख नहीं है, परन्तु पत्र की विषय-वस्तु से यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि दोनों शहजादों में ताजमहल की मरम्मत के बारे में विचार-विमर्श हुआ था। ६ मुहर्रम रविवार को उसने अपनी दक्षिण की यात्रा पुनः प्रारम्भ की थी।

इस पत्र में औरंगजेब ने दोनों कब्रों (ऊपर तथा नीचे की) तथा भवन के उस बाग को अच्छी दशा में पुष्ट एवं पक्का पाया था, परन्तु ऊपर की मंजिल, अनेक स्थान की छतें, मस्जिद एवं जमातखाना (पूर्व दिशा का भवन) को बहुत खराब दशा में वर्षा से भीगा, सीलनयुक्त, टपकता आदि बताया था। औरंगजेब ने जहाँ कब्र को शाहजहाँ निर्मित लिखा है वहीं ताजमहल (विशेष कर गुम्बज) तथा अन्य भवनों के बारे में ऐसा नहीं लिखा है जिससे आभास हो कि यह भवन शाहजहाँ कीउपस्थिति में अथवा उसके आदेश से बनाये गये थे।

आइये, अब ताजमहल परिसर की एक परिक्रमा कर लें। यह भवन एक मकबरा है जिसमें शाहजहाँ की मुखय रानी का शव मुखय भवन के बीचों-बीच दफन किया गया है। इसके बगल में ही एक ओर शाहजहाँ की कब्र है जिसे देखने से स्पष्ट है कि प्रारम्भ में इसी भवन में शाहजहाँ को दफन करने का कोई कार्यक्रम नहीं था। इन दोनों कब्रों की प्रतिकृतियां एक नीचे के कमरे में भी हैं। कहते हैं कि नीचे वाली कब्रें असली हैं। ऊपर नीचे २-२ कब्रें क्यों बनाई गई, इसका कोई भी सन्तोषजनक उत्तर कोई विद्वान मुझे नहीं दे सका। मेरे पास उत्तर है और समय आने पर पाठकों के सम्मुख अवश्य रखूंगा।

ताजमहल एक मकबरा है, जिसमें शाहजहाँ, अर्जुमन्द बानों बेगम (मुमताज) के अतिरिक्त उसकी प्रमुख दासी सती-उन्‌-निस खानम तथा शाहजहाँ की एक अन्य पत्नी सरहन्दीबेगम की कब्रें भी हैं। इस प्रकार यह परिसर मकबरा होने के साथ-साथ एक छोटा मोटा कब्रिस्तान भी है, अतः यहां का पूरा वातावरण पूर्ण शान्त तथा स्निग्ध होना चाहिएं आइये देखें, क्या इसी प्रकार का है ?

ताजमहल के परिसर के मध्य भाग में स्थित ऊँचे सरोवर के दोनों ओर पूर्व पश्चिम मेंदो छोटे भवन आमने-सामने बने हैं। इनका नाम नक्कारखाना है। लगभग दस वर्ष पूर्व तक पश्चिम वाले भवन में इसी नाम की प्लेट लगी थी, परन्तु जबसे हम लोगों ने इस बात का प्रचार आरम्भ कर दिया, यह प्लेट हटा दी गई तथा उस भवन को संग्राहलय के रूप में बदल दिया गया है। फिरभी पूर्व का भवन अभी उसी नाम का है, यद्यपि नाम-पट्‌ट वहाँ पर भी नहीं है। नक्कारखाना का अर्थ होता है वाद्यभवन अर्थात्‌ वह स्थान जहाँ पर वाद्य-यन्त्र रखे जाते हों अथवा बजाये जाते हों। इस विषय पर अधिक न कह कर पाठकों को सोचने के लिये छोड़ देता हूँ कि क्या किसी कब्रिस्तान में वादन, गायन, नृत्य समारोह आदि की कोई गुंजाया होती है ? क्या संसार के किसी कब्रिस्तान में नक्कारखाना है ?

ताजमहल के पश्चिम स्थिति भवन को मस्जिद कहते हैं। इसके विपरीत पूर्व दिशा में जो भवन है, उसे आजकल 'जवाब' कहा जाता है। कहने वाले का तात्पर्य यह प्रतीत होता है कि पहले शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया फिर धार्मिक भावना से वशीभूत होकर पश्चिमी भाग में मस्जिद का निर्माण करा दिया था। ताजमहल की प्रतिष्ठा के अनुरूप पूर्व भाग में भी एक भवन मस्ज़िद की प्रतिकृति का बना दिया, जिसे 'मस्जिद का जवाब' कहागया।

उक्त कथन से यह ध्वनि निकलती है कि मस्जिद पहले बनी थी तथा जवाब बाद में बना था। इस प्रकार मस्ज़िद का भवन जवाब से पुरान है, चाहे कुछ मास यावर्ष ही हो अथवा तर्क के लिये मान लें तो दोनों साथ-साथ बने थे। कुछ नाजुक कारणों से इस समस्या पर गहराई से न जाकर मात्र इतना कहना ही पर्याप्त है कि मस्जिद में अनेक ऐसी चीजें हैं, जो जवाब के बाद की हैं। स्पष्ट है कि दोनों भवन पर्याप्त पुराने हैं, परन्तु पश्चिम के भवन को शाहजहाँ ने मस्जिद का रूप देने के लिय फर्श बना दिया जिस पर एक-एक पत्थर पर एक-एक नमाज़ी के लिये नमाज अदा करने हेतु स्थाना बनाया गया एवं इमाम के बैठने के लिये एक सीढ़ीनुमा आसन बना दियां इस आसन के बनने से पीछे दीवार पर बनी चित्रकारी आधी छिप गई है, जिससे स्पष्ट है कि यह बाद का निर्माण है अर्थात्‌ परिवर्तन है।

इसी परिसर में जिलाखाना (मनोरंजन कक्ष) तथा जमातखाना-मेहमानखाना (अतिथि गृह) आदि नामों के भवन भी हैं। क्या किसी मकबरे में इस प्रकार के भवनों की आवश्यकता है अथवा बनवाये जाते हैं ? क्या शाहजहाँ अपनी तथाकथित परमप्रिय रानी की मधुर स्मृति की विशेष व्यथा में यहाँ पर कोई जश्न मनाता था ? जिसमेंभाग लेने के लिये कलाकार एवं मेहमान आते थे, जिनके लिये इन भवनों की आवश्यकता थी क्या यह सब अप्रासंगिक एवं बेतुका-सा प्रतीत नहीं होता है ?

कुछ अन्य परिस्थितियों से भी पाठकों को परिचित कराना उचति प्रतीत होता हैं आपने अनेक बार ताजमहल का भ्रमण किया होगा। क्या आपने कभी ध्यान दिया अथवा आपको पता है कि इसी परिसर में 'गौशाला' भी स्थिति हैं यह क्या आपको आश्चर्यजनक प्रतीत नहीं होता हैं किसी मकबरे अथवा कब्रिस्तान के अन्दर गौशाला का क्या काम है ? मैं शाहजहाँ की सदाशयता पर प्रश्न-चिन्ह नहीं लगाता हूँ ! उसकी हिन्दू वत्सलता अथवा मिली-जुली संस्कृति जिसकी नींव अकबर महान्‌ ने डाली थी, का पोषक होने के प्रचार को भी अभी नहीं झुठलाना चाहता हूँ। फिर भी यह एक स्पष्ट प्रश्न उन सभी पाठकों से है, जो अभी भी इस मानिसकता से नहीं उबर पाये हैं कि ताजमहल शाहजहाँ का सृजन है, कि गौशाला का मकबरे से क्या सम्बन्ध है ?

ताजमहल शाहजहाँ द्वारा निर्मित भवन है, इस चर्चा के पीछे बुद्धिजीवी इतने दीवाने हो गए हैं कि उन्हें कुछ सूझता ही नहीं हैं यदि किसी यन्त्र के द्वारा आज शाहजहाँ की आत्मा को जनता के सम्मुख उतारा जा सके और वह आत्मा यह सिद्धकर दे कि वह शाहजहाँ की ही आत्मा है और फिर घोषित करे कि 'ताजमहल उसने नहीं बवाया था, अपितु जयसिंह के भवन में रानी को दफनाया था। आप लोग मेरे द्वारा ताजमहल निर्मित करना कहकर मेरी आत्मा को क्लेश पहुँचाते हो।' इतना सुनकर यह दीवाने चिल्ला उठेंगे, 'देखा ! कितनी महान एवं विनम्र आत्मा है शाहजहाँ की, कितनी संकोची है। अरे जनाब ! घण्ड तो छू भी नहीं गया है। अपनी ही निर्मित वस्तु को दूसरों की बता रही हे।' और यदि मिर्जा राजा जयसिंह की आत्मा प्रकट होकर कहे कि 'शाहजहाँ ने यह भवन मुझ से छीन लिया था और मुझे भूमि का एक टुकड़ा भी नहीं दिया था।' यह सुनकर यही मतवाले कहेंगे 'देखा ! कितना झूठा एवं फरेबी है। सारा संसार कहता है कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था और यह धूर्त उसे अपना बताता है।' निम्नलिखित कुछ उदाहरण यह सिद्ध करेंगे-

एक सज्जन ने एक समाचार-पत्र में छपवाया कि ताजमहल में हिन्दू-चिन्ह इसलिये मिलते हैं कि यह एक हिन्दू मन्दिर के मलवे से बना है। मैं उन सज्जन से मिला तथा पूछा कि यदि वर्तमान ताजमहल को ढहा दिया जाए तो उसके मलवे के साबित बचे पत्थरों से कितना बड़ा ताजमहल बन सकेगा। पहले तो वह टालते रहे अथवागोलमोल उत्तर देते रहे। अतन्तः उन्होंने स्वीकार किया, उक्त मलवे से या तो ताजमहल बन ही नहीं सकेगा और यदि बन भी गया तो बहुत छोटा-सा बनेगा। जब उन्हें बताया गया कि यदि लालकिले को पूरा संगमरमर से बना कर ढलाया जाए तब उसके बचे हुए मलवे के द्वारा कठिनाई से वर्तमान ताजमहल बन सकेगा तो उन्हें स्वीकार करना पड़ा। उनसे पुनः पूछा गया कि क्या लालकिले से बड़े संगममर के किसी भवन का उन्हें पता है जिसे शाहजहाँ अथवा उसके पुरखों-सेनापतियों आदि ने गिराया हो और फिर उसके मलवे से तालमहल बनाया हो, तो वह बगलें झाँकने लगे।
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