शाहजादा औरंगजेब का शाहजहाँ के नाम पत्र हिन्दी अनुवाद तारीख ८ मुहर्रम १०६३ हिजरी, २६वाँ राजकीय वर्ष (८ दिसम्बर १६५२) रौका अत ए आलमगीर यह भक्त एवं अनुरक्त सेवक स्वामिभक्त पूर्ण स्वीकारने योगय प्रेम तथा आज्ञापालन प्रस्तुत करने के पश्चात्, जो नित्य प्रसन्नता अधिकृत कार्य है, दीनतापूर्वक (आपके) ध्यान में लाता हूँ कि इस शिष्य (मुरीद) ने तारीख तीन गुरुवार मुहर्रम के प्रतिष्ठित मास १०६३ हिजरी को अकबराबाद में प्रवेश किया। वह सीधा जहानआरा के बाग में गया उस संसार के निवासियों की शाहजादी को मिलने के विचार से। ओर उसके साथ का उदारता काउस सुन्दर घर में आनन्द उठाकर और सायंकाल को वह महाबत खान के बाग में स्थित महल (मंजिल) में वापस आ गया। और शुक्रवार को उस प्रकाशित मकबरे में धार्मिक कृत्य करने के लिये जाकर उसने पूर्ण भक्तिपूर्वक दर्शन का आर्शीवाद प्राप्त किया। इस तीर्थ के घेरे (हज़ीरा) के भवन (इमारत) की पवित्र नींव अब भी पक्की तथा मजबूत (उस्तवार) है वैसी ही जैसी आपके प्रकाशमान उपस्थिति में थी सिवाय उस गुम्बज, जो उस सुगन्धित समाधि (मरक़द) के ऊपर है, जो वर्षा ऋतु में उत्तर की ओर दो स्थानों पर रिसता था। इसी प्रकार चार मेहराब फाटक (पिशतक), कई मेहराबदार कोने (शाह नशीनान) दूसरी मंजिल के (मरतबा), चार छोटे गुम्बज, उत्तर की ओर चार दालान (सुफ्फा) और छोटे कमरे सात-मेहराबी कुर्सी के (कुर्सी ए हब्तदार) गीले हो गये हैं (दरनाम)। संगमरमर से घिरी छत बड़े गुम्बज की भी दो या तीन स्थनों पर वर्षा में रिसी थी तथा उसकी मरम्मत की गई थी। देखना है अगली बरसात में क्या होता है। मस्जिद तथा जमात खाना के गुम्बज भी बरसात में रिसे थे और उनकी भी मरम्मत की गई थी। शिल्पी (बन्नयान) इस विचार के हैं कि यदि दूसरी मंजिल (मरतबा) की छत (पुश्त ए बाम) काऊपर भाग (फर्श) उखाड़ कर तलछट के विशेष गारे (रेखता) द्वारा उसे भरकर उसके ऊपर आधे गज की तह (तखारी) चूरे की फाटक तथा संकरे भागों और छोटे गुम्बजों पर चढ़ाई जाय तो सम्भवतः यह ठीक हो जाय (अर्थात् पानी रिसना बन्द जो जाय) परन्तु वह अपनी अक्षमता बड़े गुम्बज को ठीक करने के बारे में स्वीकार करता है। हमारे रक्षक आपकी आयु लम्बी हो। एक विशेष दुर्भाग्य इस महान भवनों में आदर्श का आ गया है। यदि आपकी पवित्र दया दृष्टि किरण इस पर गिरे तभी इस दुर्भाग्य का अन्त हो सकता है और यही सही होगा। बरसात में चन्द्र वाटिका (महताब बाग) पानी से भर गई थी फलतः इसकी स्वच्छता नष्ट हो गई। निकट भविष्य में यह अपना बदला हुआ नया स्वरूप प्राप्त कर सकेगी। षटकोणीय सरोवर (हौज ए मुसम्मन) और इसके समीप स्थित भवन पवित्र (पाकी जाह) तथा अछूते (मुसफ्फा) है और जो कुछ भी यमुना की बाड़ के बारे में सुना गया है वह आश्चर्यजनक है। अब नदी उतर गई है और इसके समीप बह रही है। मंगलवार (सम्भवतः शनिवार) को मैं संसारी जनों की राजकुमारी को अपने डेरे पर लाया तथा अगले दिन (रविवार) उससे विदा लेने गया। और पवित्र सोमवार के दिन वहाँ (अकबराबाद)से चलकर आज मुहर्रम मास की ८वीं तारीख १०६३ हिजरी मंगलवार को धौलपुर के समीप पहुँच गया हूँ। यदि महान परमात्मा की इच्छा रही तो जैसा कि इससे पहले प्रेषित कियागया है, किसी स्थान पर बिना गति में व्यवसधान डाले दक्षिण की सीमा पर पहुँचने से पूर्व तक मैं प्रति स्थान की यात्रा का विवरण सेवा में प्रेषित करता रहूँगा। यह शब्द कि इस्लाम के साम्राज्य का सूर्य संसार की जनता के सिरों पर चमकता एवं देदीप्यमान रहे। (इसे एस. ए. एन. नदवी ने अपनी पुस्तक 'रुक्कात ए आलमगीर' खण्ड २ आजमगढ़ १९३० ई. में प्रकाशित किया था।) |
२४ परिशिष्ट >